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वैक्यूम क्लीनर के जमाने में भी कम नहीं है जलवा, खजूर के पत्तों की झाड़ू की शहरों में खूब डिमांड

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Agency:Local18
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बिहार के बांका जिले में रहने वाला आदिवासी समुदाय खजूर के पत्तों से झाड़ू तैयार करता है, जिसकी सप्लाई आसपास के जिलों के अलावा पड़ोसी राज्यों तक की जाती है. बांका के बेलहर प्रखंड के श्रीनगर गांव में आदिवासियों के...और पढ़ें

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झाड़ू

झाड़ू बनती महिलाएं

दीपक कुमार/बांका. भले आज का जमाना वैक्यूम क्लीनर का, लेकिन शहर से गांव तक आज भी झाड़ू का जलवा कायम है. ऐसे में अगर बात करें स्पेशल क्वालिटी के झाड़ू की, तो इसके लिए आपको बिहार आना पड़ेगा, जहां खजूर के पत्तों से झाड़ू बनाया जाता है. बिहार में भी हर जिले में नहीं, बल्कि प्रदेश के पूर्वी इलाके के जिले बांका में खजूर के पत्तों से आदिवासी समुदाय के लोग यह झाड़ू तैयार करते हैं.

यह आदिवासी समुदाय बांका जिला के बेलहर प्रखंड के श्रीनगर गांव में रहता है, जिसकी आजीविका का प्रमुख साधन झाड़ू निर्माण है. इस समुदाय के लगभग 1000 परिवार इस गांव में रहते हैं. समुदाय के प्रधान वीर सिंह बासुकी लोकल18 को बताते हैं कि वे लोग मूल रूप से बदुआ डैम विस्थापित हैं. विस्थापन की वजह से इन लोगों के रोजगार का प्रमुख जरिया झाड़ू निर्माण है. आदिवासी समुदाय की महिलाएं व पुरुष, दोनों ही खजूर के कांटेदार पत्तों से झाड़ू बनाते हैं. इस काम में ज्यादातर संख्या महिलाओं की है. ये सुबह ही जंगल से खजूर के पत्ते काटकर लाती हैं. एक-एक पत्ते को कील से फाड़कर सड़क किनारे सुखाया जाता है, फिर झाड़ू तैयार किया जाता है.

वीर सिंह बासुकी बताते हैं कि एक झाड़ू तैयार करने में तीन दिन का समय लगता है. चूंकि ग्रामीण इलाके में और कोई काम इन लोगों को नहीं मिलता. लिहाजा जंगल से खजूर या सखुआ के पत्ते चुनकर उससे बनने वाले उत्पाद को बेचकर ही ये लोग अपनी आजीविका चला पाते हैं. खजूर के पत्तों से जहां झाड़ू बनाया जाता है, वहीं सखुआ के पत्ते भोज पत्तल बनाने के काम आते हैं. झाड़ू बनाने वाले समुदाय की महिलाएं कहती हैं कि पेड़ से खजूर का कांटा बचाकर पत्ते लाना जोखिम भरा है. क्योंकि इसकी वजह से कई बार महिलाओं के हाथ लहूलुहान हो जाते हैं. एक झाड़ू 10 रुपए तक बिक जाता है. बाहर के व्यापारी गांव आकर झाड़ू खरीदते हैं. एक परिवार 60 से 70 झाड़ू बना लेता है, जिससे रोजाना 600 से 700 रुपए की कमाई हो जाती है.

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जहां नहीं पहुंचे वैक्यूम क्लीनर, वहां आज भी खजूर के पत्तों के झाड़ू का जलवा
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