सब्सक्राइब करें
Hindi News ›   India News ›   Climate Change affecting Earths Rotation Clocks to Navigation Systems and GPS may falter news explained

Climate Change: हो जाइए खबरदार! जलवायु परिवर्तन से घट रही है धरती की रफ्तार, क्या घड़ी, GPS हो जाएंगे बेकार?

Harendra Chaudhary हरेंद्र चौधरी
Updated Sat, 06 Apr 2024 09:54 AM IST
सार

देश के प्रसिद्ध भू-वैज्ञानिक डॉ. एसपी सती अमर उजाला को बताते हैं कि यह बेहद चौंकाने वाला शोध है। ग्लोबल वार्मिंग का असर अब धरती पर पड़ना शुरू हो गया है। ग्लेशियर बड़ी तेजी से पिघल रहे हैं यह तथ्य लगातार सामने आ रहे हैं। 

Climate Change affecting Earths Rotation Clocks to Navigation Systems and GPS may falter news explained
जलवायु परिवर्तन का पृथ्वी पर असर। - फोटो : Amar Ujala

विस्तार
Follow Us

धरती का बढ़ता तापमान धीरे-धीरे अपना असर दिखा रहा है। बढ़ते पारे की वजह से ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे समुद्र का स्तर तेजी से बढ़ रहा है। आने वाले समय में इसका असर यह होगा कि समुद्र किनारे बसे शहर डूबने लगेंगे, जो वाकई एक बेहद खौफनाक मंजर होगा। अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड जैसे क्षेत्रों में भी क्लाइमेट चेंज (जलवायु परिवर्तन) का असर दिखना शुरू हो गया है, जहां रोजाना हर घंटे तीन करोड़ टन बर्फ पिघल रही है। लेकिन चिंता की बात केवल यहीं तक सीमित नहीं है। हाल ही में एक शोध में सामने आया है कि जलवायु परिवर्तन और गुरुत्वाकर्षण शक्ति की वजह से धरती के घूमने की रफ्तार पर गंभीर असर पड़ रहा है। उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव में अब इतनी बर्फ पिघल चुकी है, जिसने समुद्र स्तर में अप्रत्याशित बढ़ोतरी कर दी है, जिसका असर अब पृथ्वी के घूर्णन (रोटेशन) पर पड़ने लगा है। इसका असर न केवल हमारे पर्यावरण पर पड़ने वाला है, बल्कि हमारी घड़ी पर भी इसका प्रभाव दिखेगा, जो इतना घातक होगा कि दुनियाभर के जीपीएस नेविगेशन सिस्टम और सैटेलाइट गलत जानकारियां देने लगेंगे। 
Trending Videos


पृथ्वी के इक्वेटर में पहुंचा पानी
देश के प्रसिद्ध भू-वैज्ञानिक डॉ. एसपी सती अमर उजाला को बताते हैं कि यह बेहद चौंकाने वाला शोध है। ग्लोबल वार्मिंग का असर अब धरती पर पड़ना शुरू हो गया है। ग्लेशियर बड़ी तेजी से पिघल रहे हैं यह तथ्य लगातार सामने आ रहे हैं। वह बताते हैं कि ग्रीनलैंड और अंटार्टिका में ग्लेशियर पिघलने से धरती का मास यानी द्रव्यमान बढ़ गया है। बेहद आसान शब्दों में समझाते हुए वह कहते हैं कि हमारी धरती लट्टू की तरह घूमती है और उसके सिर पर वजन होता है, वहीं वजन जब नीचे पहुंच जाए तो उसकी रफ्तार में अंतर आ जाएगा। ऐसा ही कुछ धरती के साथ हुआ है और उसकी गति धीमी हो गई है। ग्लेशियरों का पिघला हुआ पानी पृथ्वी के इक्वेटर (कोर) में पहुंच गया है, जिससे उसकी एंगुलर वेलोसिटी (कोणीय वेग) बदल गई है।  
विज्ञापन


समय की गणना पर पड़ेगा असर
डॉ. एसपी सती के मुताबिक पृथ्वी की घूर्णन गति धीमी होने का व्यापक असर होने वाला है। इसका सबसे पहला असर हमारे समय की गणना पर पड़ेगा। हालांकि यह पूरी तरह से कंप्यूटराइज्ड है, लेकिन धरती की गति में अंतर आने पर एटोमिक क्लॉक में सेकंडों का करेक्शन करना पड़ता है। भले ही यह 10 लाखवें हिस्से तक हो सकता है। इसे लीप सेकंड कहा जाता है। पहले यह   करेक्शन 2026 में किया जाना था, लेकिन अब इसे 2029 में किया जाना प्रस्तावित हुआ है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो बड़े स्तर पर गणनाओं में दिक्कत हो सकती है। 

क्या है निगेटिव लीप सेकंड? 
स्क्रिप्स इंस्टीट्यूशन ऑफ ओशनोग्राफी का शोध बताता है कि पृथ्वी की गति धीमी होने से लीप सेकंड बढ़ाने की बजाए घटाना होगा। यही वैज्ञानिकों के लिए चिंता का विषय है, जिसे निगेटिव लीप सेकंड कहा जा रहा है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि धरती की रफ्तार धीमी होने से अचानक 24 घंटे की बजाए 25 घंटे हो जाएंगे। ऐसा तो नहीं होगा, लेकिन इसका प्रभाव समयनिर्धारण पर जरूर पड़ेगा। दरअसल समयनिर्धारण के लिए पूरी दुनिया में यूनिवर्सल कोऑर्डिनेटेड टाइम (UTC) को प्रयोग किया जाता है, जिसे खगोलीय समय के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि यह पृथ्वी के घूर्णन और तारों के बीच गणनाओं पर आधारित होता है, इसे लंबे समय से घड़ियों और टाइमकीपिंग के लिए वैश्विक मानक के रूप में उपयोग किया जाता है। 1967 में परमाणु घड़ियों का इस्तेमाल किया जाने लगा, जो परमाणुओं द्वारा उत्सर्जित प्रकाश की आवृत्ति का उपयोग करके हर सेकंड आगे बढ़ती हैं, जो एक सटीक टाइमकीपर हैं। आज, लगभग 450 परमाणु घड़ियों का एक सेट धरती पर आधिकारिक समय बताता है, जिसे यूटीसी के रूप में जाना जाता है। 1972 में पृथ्वी की गति के हिसाब से परमाणु घड़ियां चलती रहें, इसके लिए लीप सेकंड्स का उपयोग किया जाने लगा। 

यूटीसी से एक लीप सेकंड को हटाने की जरूरत 
वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी के घूमने की दर उसके तरल कोर में धाराओं से प्रभावित हो रही है, जिसके कारण 1970 के दशक से बाहरी परत की घूर्णन गति बढ़ी थी। इसका मतलब यह है कि निगेटिव लीप सेकंड की कम बार आवश्यकता होती है, और यदि यह आगे भी जारी रहता है, तो यूटीसी से एक लीप सेकंड को हटाने की जरूरत होगी। वैज्ञानिक इसी बात से चिंतिंत हैं कैसे एक सेकंड घटाया जाए? लीप सेकंड इसलिए जोड़े जाते हैं क्योंकि यदि पृथ्वी लाखों वर्षों में धीमी गति से घूमती रहती है, तो पृथ्वी की गति के मुताबिक UTC में मिनट की लंबाई 61 सेकंड होनी चाहिए। 

समय कैसे घटाया जाए?
अमेरिकी नौसेना के अनुसार, आखिरी बार 31 दिसंबर 2016 को लीप सेकंड जोड़ा गया था। पृथ्वी की गति के मुताबिक 1972 से लेकर 1999 तक हर साल लीप सेकंड जोड़ा जाता रहा है। लेकिन पिछले 23 सालों में मात्र चार बार ही लीप सेकंड जोड़ा गया। वैज्ञानिक कहते हैं कि हमारे कंप्यूटर्स इसके लिए तैयार हैं कि कैसे लीप सेकंड को जोड़ा जाए। लेकिन वे इस समस्या से जूझने के लिए तैयार नहीं हैं कि 12:00:03 बजे से 12:00:02 बजे का टाइम कैसे एडजस्ट किया जाए, जो कुछ-कुछ Y2K बग जैसा है।  

वहीं अब कुछ वैज्ञानिक लीप सेकंड समाप्त करने के पक्ष में हैं। 2022 के आखिर में, वैज्ञानिकों और दुनियाभर की सरकारों के  प्रतिनिधियों के एक पैनल ने 2035 तक लीप सेकंड समाप्त करने के लिए मतदान किया। विशेषज्ञों का कहना है कि लीप सेकंड ने कंप्यूटिंग के लिए जटिलताएं पैदा कर दी हैं और उन्हें डर है कि अधिकांश कंप्यूटर कोड निगेटिव लीप सेकंड को समझ पाने में असमर्थ हैं। 
विज्ञापन

रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें Android Hindi News apps, iOS Hindi News apps और Amarujala Hindi News apps अपने मोबाइल पे|
Get all India News in Hindi related to live update of politics, sports, entertainment, technology and education etc. Stay updated with us for all breaking news from India News and more news in Hindi.

विज्ञापन
विज्ञापन

एड फ्री अनुभव के लिए अमर उजाला प्रीमियम सब्सक्राइब करें

Next Article

एप में पढ़ें

Followed