एडवेंचर के लिए खास है ये जगह, रॉक क्लाइंबिंग से लेकर पैराग्लाइडिंग तक का मिलता है मजा
टिहरी गढ़वाल में विभिन्न ट्रेक, ट्रेल्स का अनुभव किया जा सकता है. यहां कई ऐसे पर्यटक स्थल हैं जो एडवेंचर के शौकीन ट्रेकर्स की पहली पसंद रहते हैं. अगर आप भी इस गर्मी में कुछ दिनों का समय निकालकर कूल-कूल होना चाहते हैं, तो आप उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल पहुंच सकते हैं. यहां आपको एडवेंचर के साथ अध्यात्म से भी रूबरू होने का सुनहरा अवसर मिलेगा.
रॉक क्लाइंबिंग आमतौर पर कृत्रिम वातावरण में की जाती है. लेकिन, टिहरी गढ़वाल में ट्रेकिंग के शौकिनों के लिए एडवेंचर की कोई कमी नहीं है. यहां रॉक क्लाइंबिंग के साथ साहसिक गतिविधि का अनुभव करने और प्राकृतिक वातावरण का हिस्सा बनने का मौका मिलता है. टिहरी रॉक क्लाइम्बिंग के लिए एक अच्छी जगह मानी जाती है. देश भर से लोग यहां पहुंचते हैं.
रॉक क्लाइंबिंग के साथ यहां कई अन्य स्थल एक्सप्लोर करने लायक हैं. इनमें टिहरी बांध, चंबा, धनोल्टी, टिहरी, प्रतापनगर, घुत्तु समेत कई अन्य पर्यटक स्थल शामिल हैं. इन्हें करीब से देखा व समझा जा सकता है. यहां पहाड़ की एक समृद्व संस्कृति भी देखने को मिलती है. वहीं, टिहरी झील के ऊपर पैराग्लाइडिंग करना एडवेंचर का कभी न भूलने वाला अहसास दिलाता है.
टिहरी बांध भारत के सबसे ऊंचे बांधों में से एक है. बांध के बनने से यहां कई किलोमीटर लंबी झील मौजूद है. इस झील में साहसिक गतिविधियां संचालित होती हैं. यहां वॉटर स्पोर्ट्स कंपटीशन का आयोजन भी समय-समय पर किया जाता है. इसके अलावा बड़ी संख्या में वोटिंग करने के शौकीन भी यहां पहुंचते हैं. टिहरी झील अपने आप में एक खूबसूरत झील है. इसका जलस्तर कम होने पर झील में समाए गांव की झलकियां भी देखने को मिल जाती हैं, जो अपने आप में रोमांचित करने के साथ कई सवाल छोड़ जाता है.
नाग टिब्बा, रोमांच के शौकीनों के लिए एक लोकप्रिय ट्रेक है. यहां से हिमालय की बंदरपूंछ, काला नाग, श्रीकांत, गंगोत्री पर्वत श्रृंखलाओं के दीदार होने के साथ हिमालय पर्वतों के 360-डिग्री व्यू देखने को मिलता है. टिहरी गढ़वाल स्थित नाग टिब्बा, धौलाधार और पीर पंजाल के साथ हिमालय की छोटी तीन प्रमुख श्रृंखलाओं में से एक है.
टिहरी गढ़वाल के लंबगांव क्षेत्र में सेम मुखेम स्थित है. लंबगांव से करीब 30 km का सफर करने के बाद श्रद्धालु यहां पहुंच सकते हैं. यहां शेषनाग अवतार के रूप में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा होती है. मान्यता के अनुसार, द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण सेम मुखेम की ओर यात्रा के लिए आए थे, तो उन्हें यह स्थान बहुत पसंद आया. श्री कृष्ण ने सेम मुखेम के राजा गंगू रमोला से जगह मांगी तो गंगू रमोला ने जगह देने से इंकार कर दिया. इससे क्रोधित होकर भगवान कृष्ण ने गंगू रमोला की सभी गाय भैंस को पत्थर बना दिया. उसके बाद गंगू रमोला के जगह देने के बाद भगवान श्रीकृष्ण के रूप में यहीं पर स्थापित हो गए. तब से यह क्षेत्र प्रसिद्ध हो गया व दूर दराज से लोग यहां आते हैं.