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Nalanda News: रानी अहिल्याबाई ने 350 साल पहले बसाया था ये गांव, जानें क्यों है फेमस

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जानकार देवेंद्र विश्वकर्मा और सीताराम केसरी बताते हैं कि 350 साल पहले रानी अहलियाबाई ने इस गांव को बसाया था. यहां कठोर काले पत्थर की नक्काशी की जाती है, जो अपने आप में अनोखा है. यहां के लोग ग्रेनाइट सफेद, बलुआ ...और पढ़ें

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मूर्तियों

मूर्तियों को अंतिम रूप देती महिलाएं.

रिपोर्ट-मो. महमूद आलम

नालंदा. नालंदा और गया जिले की सीमा पर पहाड़ियों की गोद में बसा है बेशकीमती और खूबसूरत मूर्तियों का गांव पत्थरकट्टी. गया शहर से इसकी दूरी 30 किमी है, लेकिन इसका सरोकार नालंदा जिले के बाजारों से है. इस गांव के 75% आबादी पत्थर को तराश कर मूर्तियां बनाने का काम करती है, जिसे देश के कोने-कोने से लोग यहां खरीदने आते हैं.

350 साल पहले रानी अहलियाबाई ने बसाया था गांव

यहां के जानकार देवेंद्र विश्वकर्मा और सीताराम केसरी बताते हैं कि 350 साल पहले रानी अहलियाबाई ने इस गांव को बसाया था. मूर्ति बनाने का काम परंपरागत रूप से गौड़ ब्राह्मणों का था. मध्यप्रदेश के इंदौर की रानी अहिल्याबाई के निमंत्रण पर सैकड़ों गौड़ ब्राह्मण राजस्थान से चलकर यहां आए थे. ऐसी मान्यता है कि गया का प्रसिद्ध विष्णुपद मंदिर का निर्माण किया गया था. शायद पत्थरों की वजह से ही मूर्तिकार को यहां बसाया गया था.

गांव में कठोर काले पत्थर की नक्काशी की जाती है, जो अपने आप में अनोखा काम है. यहां के कारीगर ग्रेनाइट सफेद, बलुआ पत्थर, संगमरमर को मनचाहा रूप देने में माहिर हैं. मूर्ति के अलावा घरेलू और सजावटी सामान भी बनाते हैं. यहां के पत्थर की तराशी मूर्तियां की देश ही नहीं, बल्कि विदेश में भी काफी डिमांड है.

500 घर पत्थरों को तराशने का करते हैं काम

इस पंचायत में 500 घरों है, जिसमें 10,000 लोग रहते हैं. इसमें बच्चे, बूढ़े, जवान, महिलाएं सभी कोई न कोई काम करते हैं. यहां के ज्यादातर पुरुष पत्थरों को तराशने का काम करते हैं. वहीं, महिलाएं और बच्चे मूर्ति को घिसने और आकर्षक रूप देने के लिए पेंटिंग का काम करते हैं. यहां सभी देवी देवताओं और महापुरुषों की मूर्तियां गढ़ी जाती है. इन मूर्तियों की कीमत 1 हजार से 10 लाख तक होती है. सबसे खास बात यह है कि लोगों को मूर्ति बेचने के लिए कहीं बाहर नहीं जाना पड़ता है, लोग खुद यहां आकर खरीदते हैं या अपने मन मुताबिक बनवाते हैं.

बड़े पैमाने पर मिले बाजार

इतना कुछ होने के बाद भी यहां के लोगों के पास बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं. गया सरबहदा मार्ग पर आवागमन बढ़ने से चहल पहल बढ़ी है. गांव में बैंक, स्कूल और पार्क भी बने हैं. मूर्तियों का व्यवसाय चलने से यहां के लोगों को रोजगार मिल गया है. यहां सभी लोग अपना-अपना काम करते हैं. बड़े पैमाने पर बाजार से मिलने से मूर्तियों की बिक्री में इजाफा हो सकता है, साथ ही इससे लोगों के आय का श्रोत भी बढ़ेगा.

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