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रबी फसल पर न्यूनतम समर्थन मूल्य में दो प्रतिशत की बढ़ोतरी

कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ नौ महीने से चल रहे किसान आन्दोलन के बीच केंद्र सरकार ने एक अहम फ़ैसला किया है। 

सरकार ने गेहूं, ज्वार, बाजरा, सरसों और मटर, चना जैसे रबी फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (मिनिमम सपोर्ट प्राइस यानी एमएसपी) में दो प्रतिशत की वृद्धि करने का एलान किया है। 

गेहूं पर एमएसपी में 40 रुपये प्रति क्विंटल और जौ पर एमएसपी में 35 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की गई है।

कैबिनेट का फ़ैसला

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई कैबिनेट बैठक में यह फ़ैसला लिया गया। 

सरकार ने एक बयान जारी कर कहा है कि फसलों की विविधता को ध्यान में रखते हुए रबी सीजन 2022-23 के लिए एमएसपी बढ़ा दिया गया है।

गेहूं, रेपसीड और सरसों पर ज्यादा बढ़ोतरी हुई है और उसके बाद जौ, चना, मसूर और दूसरे फसलों पर।

तिलहन, दलहन और मोटे अनाजों के समर्थन मूल्य पर हाल फिलहाल अधिक ध्यान दिया गया है। सरकार का कहना है कि एमएसपी बढ़ने से किसानों को उनकी फसल की उचित कीमत मिलेगी। 

rabi crop MSP, minimum support price for wheat increased  - Satya Hindi

7.5 लाख नए रोज़गार

कैबिनेट मंत्री अनुराग ठाकुर ने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद कहा कि टेक्सटाइल सेक्टर के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन नीति को मंजूर किया गया है।

इसके तहत अगले पाँच साल में केंद्र सरकार 10,683 करोड़ रुपये खर्च करेगी। इससे 7.5 लाख नए रोज़गार पैदा हों

क्या कहा था वित्त मंत्री ने?

वित्त मंत्री ने इस साल का बजट पेश करते हुए दावा किया था कि नरेंद्र मोदी सरकार ने हर क्षेत्र में किसानों को मदद दी है। 

उन्होंने कहा था कि दाल, गेहूं, धान समेत अन्य फसलों की एमएसपी बढ़ाई गई है। उन्होंने कहा था कि 2013-14 में किसानों को गेहूं के लिए 33,874 करोड़ रुपये का भुगतान किया था, जबकि 2019-20 में यह 62,802 करोड़ हो गया था।

 उन्होंने कहा था कि 2020-21 में यह बढ़कर 75,060 करोड़ हो गया। 

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निर्मला सीतारमण, वित्त मंत्री

किसानों को क्या है आशंका?

बता दें कि कृषि क़ानून 2020 पारित होने के बाद से एमएसपी पर बहस एक बार फिर शुरू हो गई। किसानों को इसकी आशंका है कि इन क़ानूनों के लागू होने के बाद न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी ख़त्म कर दी जाएगी। सरकार ने इससे इनकार किया है।

किसानों की मूल आशंका यह है कि इन सुधारों के बहाने सरकार एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर फ़सलों की सरकारी खरीद और वर्तमान मंडी व्यवस्था से पल्ला झाड़कर कृषि बाज़ार का निजीकरण करना चाहती है।

नए क़ानूनों के फलस्वरूप कृषि क्षेत्र पूंजीपतियों के हवाले हो जाएगा जो किसानों का जम कर शोषण करेंगे। सरकार का तर्क है कि इन क़ानूनों से कृषि उपज की बिक्री हेतु एक नई वैकल्पिक व्यवस्था तैयार होगी जो वर्तमान मंडी व एमएसपी व्यवस्था के साथ-साथ चलती रहेगी।

इससे फ़सलों के भंडारण, विपणन, प्रसंस्करण, निर्यात आदि क्षेत्रों में निवेश बढ़ेगा और साथ ही किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी।

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क़मर वहीद नक़वी
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