पटना जलजमाव- हम तो खुद ही पानी के घर में घुसकर बैठे हैं

इस बार भी बिहार सरकार के दावे फेल हो गये. गुरुवार की रात 147 मिमी बारिश के बाद लगभग पूरा पटना बेहाल हो गया. 150 से अधिक मोहल्ले जलमग्न हो गये. लोगों को दिन भर अपने घरों से पानी उलीचना पड़ा, कीचड़ और गंदगी वाले पानी से होकर गुजरना पड़ा. निचली बस्तियों में अभी भी कई जगह पानी जमा है.   

Source: News18Hindi Last updated on:June 27, 2021 1:39 PM IST
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पटना जलजमाव- हम तो खुद ही पानी के घर में घुसकर बैठे हैं
गौतम बुद्ध ने भविष्यवाणी की थी कि पटना शहर पर आग, पानी और आपसी कलह से हमेशा खतरा बना रहेगा.

शुक्रवार, 25 जून, 2021 को पूरे दिन बिहार की राजधानी पटना के जलमग्न विधानसभा परिसर, उप मुख्यमंत्री आवास और अलग-अलग मोहल्लों की तसवीर सोशल मीडिया पर तैरती रही. इसके साथ ही नगर विकास विभाग के सचिव आनंद किशोर के उस दावे की भी खिल्लियां उड़ती रहीं, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर पटना में 150 मिमी बारिश भी हो जाये तो पांच से छह घंटे में पानी शहर से बाहर निकल जायेगा. जाहिर है कि इस बार भी बिहार सरकार के दावे फेल हो गये.


गुरुवार की रात 147 मिमी बारिश के बाद लगभग पूरा पटना बेहाल हो गया. 150 से अधिक मोहल्ले जलमग्न हो गये. लोगों को दिन भर अपने घरों से पानी उलीचना पड़ा, कीचड़ और गंदगी वाले पानी से होकर गुजरना पड़ा. निचली बस्तियों में अभी भी कई जगह पानी जमा है. इस बारिश ने पटना के लोगों को एक बार फिर से 2019 के सितबंर महीने के आखिरी दिनों में हुई भारी बारिश और जलजमाव की याद दिला दी, जब तीन दिनों में हुई लगभग 500 मिमी बारिश की वजह से पूरी राजधानी हफ्तों जलमग्न रही थी.


सितंबर 2019 में आधे से अधिक शहर में लोगों के ग्राउंड फ्लोर पर बारिश का पानी घुस आया था. हजारों लोगों को क्रेन से रेस्क्यू करना पड़ा था. इन लोगों में बिहार के तत्कालीन डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी और मैथिली-भोजपुरी की ख्यातिप्राप्त गायिका शारदा सिंहा भी थीं. लंबे समय तक बचाव औऱ राहत कार्य चलता रहा. उस घटना के बाद बिहार सरकार की नेशनल मीडिया में खूब फजीहत हुई.


लंबी कवायद के बाद नतीजे अभी भी सिफर

यह मामला बीतने के बाद सरकार ने इसके कारणों का पता लगाना शुरू किया. कई अफसरों को सस्पैंड किया गया. खूब सारे तबादले हुए. फिर नये सिरे से योजना बनी. पटना नगर निगंम, बुडको और दूसरे विभागों में समन्वय की बात शुरू हुई. राज्य के कुछ पत्रकारों ने भी एक जांच रिपोर्ट तैयार की और उसे सरकार को सौंपा. इतनी सारी गतिविधियों के बाद इस साल मानसून के पहले नगर विकास विभाग के सचिव और सरकार के चहेते अफसर आनंद किशोर ने दावा किया कि अब राजधानी पटना को जलजमाव के संकट से मुक्त करा लिया गया है. अब कैसी भी बारिश हो पानी पांच से छह घंटे से अधिक नहीं जमा रहेगा. मगर शुक्रवार को लोगों ने देख लिया कि वे दावे कितने लचर थे.


मानसून से पहले पटना नगर निगम ने नौ करोड़ की राशि खर्च कर से शहर के नालों की सफाई करवायी थी. हालांकि उनकी मांग 15 करोड़ की थी, छह करोड़ उन्हें नहीं मिले. दावा किया गया कि शहर के सभी संप हाउस एक्टिव हैं. मगर पता चला कि शुक्रवार को भी कई संप हाउस चल नहीं पाये. विभागों के आपसी समन्वय का हाल यह था कि कल भी निगम और बुडको के कर्मी आपस में भिड़ गये थे. कहा गया कि नमामि गंगे परियोजना के तहत शहर के आधे इलाकों में सड़कें खोद डाली गयी हैं और उसमें कई नाले भी क्षतिग्रस्त हो गये हैं.

निश्चित तौर पर राज्य के नगर विकास विभाग में कई ऐसी गड़बड़ियां हैं, जिस वजह से वह राज्य के शहरों में सुव्यवस्थित करने में अब तक विफल रही हैं. राज्य के शहर न सिर्फ जलजमाव बल्कि जाम, अनियोजित निर्माण और दूसरी गड़बड़ियों के शिकार हैं. ऐसें में विभाग लाख दावा कर ले कि वह पटना को बारिश के दिनों में जलजमाव के संकट से मुक्त कर देगा तो इस बात पर अमूमन लोग भरोसा नहीं करेंगे. मगर पटना में जलजमाव के इस संकट की वजह क्या नगर विकास विभाग की अक्षमता ही है? या इसके पीछे कुछ और भी कारण हैं.


गौतम बुद्ध ने पटना को लेकर की थी यह भविष्‍यवाणी

वैसे तो पटना शहर लंबे समय से जलजमाव और बाढ़ के संकट से जूझता रहा है. शहर में जब भी कुछ ऐसा होता है तो यहां के लोग गौतम बुद्ध की उस भविष्यवाणी को याद करते हैं कि जब उन्होंने कहा था कि इस शहर को आग, पानी और आपसी कलह से हमेशा खतरा बना रहेगा. तीन तरफ से गंगा, सोन और पुनपुन नदी से घिरे इस शहर का आकार तश्तरीनुमा है यह बात भूगोल के कई जानकार कहते हैं. यही तश्तरीनुमा आकार इस शहर से बारिश के पानी को बाहर जाने से रोकता है.


शहर के पुराने बाशिंदा रह चुके पूर्व विधायक प्रो वसी अहमद कहते हैं कि कहने को तो कई बातें कही जाती है. यह भी कहा जाता है कि अनियोजित विकास ने इस शहर का यह हाल कर दिया. मगर सच यही है कि तीन तरफ से नदियों से घिरे होने के बावजूद हाल-हाल तक शहर में जलजमाव की स्थिति इतनी गंभीर नहीं थी. शहर के दक्षिणी इलाके में एक बड़ा जल्ला हुआ करता था, जिसमें शहर के बाऱिश के पानी के साथ सोन और पुनपुन का पानी जमा होता था. मगर हमने धीरे-धीरे उस जल्ले को कॉलोनियों में बदल दिया है. जब हम खुद पानी के घर में जा बैठे हैं तो पानी तो हमारे घर में आयेगा ही.

वहीं मेघ पईन अभियान के संस्थापक एकलव्य प्रसाद कहते हैं कि क्या प्रशासन इस बात की गणना करता है कि शहर से हर रोज कितना दूषित जल नालियों में जाता है, अगर किसी रोज 150 मिमी बारिश हो जाये तो क्या हमारी नालियां इतने पानी को संभालने लायक हैं. वे कहते हैं कि इस बात से किसको इनकार हो सकता है कि जब से नया बाई पास बना और उसके इर्द-गिर्द मोहल्ले बस गये, शहर से बारिश के पानी के निकलने का रास्ता खुद बंद हो गया.


इन दोनों की बात बिल्कुल सही है. पहले शहर में सिर्फ राजेंद्र नगर, कंकड़बाग और पाटलीपुत्र मोहल्ले में बारिश का पानी जमता था, मगर हाल के वर्षों में पूरा शहर जलजमाव का शिकार होने लगा है. यही असल वजह है, जब तक हम इस वजह की पड़ताल नहीं करेंगे समस्या बनी रहेगी और बढ़ती रहेगी.


(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
ब्लॉगर के बारे में
पुष्यमित्र

पुष्यमित्रलेखक एवं पत्रकार

स्वतंत्र पत्रकार व लेखक. विभिन्न अखबारों में 15 साल काम किया है. ‘रुकतापुर’ समेत कई किताबें लिख चुके हैं. समाज, राजनीति और संस्कृति पर पढ़ने-लिखने में रुचि.

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First published: June 27, 2021 1:39 PM IST