पटना. बिहार में 5 जुलाई को दो महत्वपूर्ण घटनाएं होने वाली हैं. पहली है राजद (RJD) का 25वां स्थापना दिवस, तो दूसरी लोजपा के संस्थापक रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) की जयंती है. इसको लेकर तैयारियां भी जोरों-शोरों से हो रही हैं, लेकिन जब पासवान की जयंती की तैयारी राजद नेता तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) भी करने की बात कहने लगें तब बात कुछ खास लगती है.
एलजेपी में टूट के बाद जहां एक तरफ असली और नकली लोजपा की लड़ाई चल रही है, वहीं चर्चा ये भी है कि राजद भी रामविलास पासवान की जयंती मनाने में कोई कोताही नहीं बरतने वाली है.
छह फीसदी पासवान वोट पर सभी लट्टू
वजह साफ है लोजपा का अपना एक वोटबैंक है, जो चिराग पासवान के साथ खड़ा है. माना जाता है कि लगभग छह फीसदी पासवान वोटबैंक की वजह से जनता दल यूनाइटेड को कम से कम 25-30 सीटों का नुकसान हुआ, तो चिराग ने 135 सीटों पर 5.66 वोट हासिल कर इस बात को सही भी साबित किया, जिस वजह से जदयू तीसरे नंबर की पार्टी बन गई. चुनावी नतीजों के बाद जनतांत्रिक गठबंधन में नीतीश कुमार की स्थिति पहले जैसी मजबूत नहीं रही है. खेल खुला हुआ है. लोजपा के नवनियुक्त अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस अपने भाई रामविलस पासवान की स्मृति में दस हजारी भोज देंगे,तो वहीं चिराग पासवान भी बिहार की बदलती राजनीतिक फिज़ा में अपना जनाधार टटोलने निकलेंगे.
तेजस्वी ने कही ये बात
हालांकि इस रेस में आगे तेजस्वी यादव बने हुये हैं. कोरोनाकाल में पहली बार राघोपुर पहुंचकर उन्होंने यह कहकर सनसनी फैला दी कि आने वाले तीन महीनों में नीतीश कुमार की सरकार गिर जाएगी. वैसे इस दावे के पीछे कोई ठोस वजह नहीं है, लेकिन बदलते सियासी तापमान में इस तरह का कोई भी बयान आग में घी का ही काम करता है. इसके अलावा पिछले कुछ समय से केन्द्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार की भी चर्चा हो रही है और लोजपा के सांसद अपने लिए उसमें जगह तलाश रहे हैं. ये वो सांसद हैं जो अपनी निष्ठा नीतीश कुमार की नेतृत्व में साफ-साफ जाता चुके हैं, इसलिए बदलते हुये राजनीतिक समीकरण के मद्देनजर तेजस्वी भी अपने लिए धरातल तलाश रहे हैं.
चिराग ने बीजेपी से नहीं छोड़ी उम्मीद
बिहार की राजनीति भी रोचक है जो आपको उबाती और थकाती नहीं है, क्योंकि इतना कुछ होने के बाद भी चिराग ने बीजेपी से अपनी उम्मीदें नहीं छोड़ी हैं. खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर चिराग ने ऐसा कोई भी बयान नहीं दिया है जो उनके खिलाफ जाए. आज भी वो अपने आप को मोदी का ‘हनुमान’ ही मान रहे हैं. ये हनुमान आगे क्या करेंगे, ये भविष्य के गर्भ में है लेकिन नीतीश कुमार ने चिराग को जमीन पर उतारने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. लोजपा के पांच सांसद तो पार्टी से अलग हो ही गए, साथ ही उनके एक मात्र विधायक ने भी नीतीश की छत्रछाया में आना ठीक समझा.
तेजस्वी राजद को ए-टू-ज़ेड की पार्टी बनाने चाहते हैं
नीतीश कुमार कुछ महीनों के बाद बिहार में लंबे समय तक शासन करने वाले मुख्यमंत्री बन जाएंगे, इसलिए राष्ट्रीय जनता दल तेजस्वी को आगे करके आक्रामक दिखने की लगातार कोशिश करता रहा है, ताकि वो अपने आप को भविष्य के लिए तैयार दिखा सकें. वैसे भी मौजूदा वक़्त में तेजस्वी मुस्लिम-यादव (माय) समीकरण से इतर अब अन्य जाति समूहों पर नजर बनाए हुए हैं. यानी वो राजद को माय समीकरण से आगे ले जाकर उसे ‘ए- टू-ज़ेड’ की पार्टी बनाना चाहते हैं.
वहीं चिराग अभी तक इस दौड़ से बिलकुल अलग-थलग एक लंबी लड़ाई की बात करते हैं. पार्टी में गुटबाजी और विभाजन के बाद भी हताश और निराश नजर नहीं आना चाहते, क्योंकि आने वाले समय बिहार के दिलचस्प राजनीतिक अखाड़े में कौन टिकता है ये जरूरी है.
बीजेपी को भी चाहिए नीति के साथ नेतृत्व
जदयू ने भी पार्टी के अंदर आवश्यक नेतृत्व परिवर्तन किए हैं, लेकिन नीतीश कुमार के बाद तेजस्वी के बरक्स एक चमत्कारिक नेतृत्व की कमी जद (यू )को खलेगी. जहां तक भारतीय जनता पार्टी का सवाल है, उसके पास नीति तो है लेकिन उनके पास एक सर्वमान्य नेता आज भी नहीं है, जो तेजस्वी जैसा युवा हो या जिसमें चिराग जैसी चमक-दमक हो.
बहरहाल, सबके लिए ये समझ लेना जरूरी है कि जब तक नीतीश मुख्यमंत्री हैं और जब तक उन्हें भाजपा के शीर्ष नेताओं का विश्वास हासिल है तब तक छोटे-मोटे हिचकोलों से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. इससे राजनीतिक सफर थोड़ा रोचक भले हो जाएगा.
पत्रकारिता में 22 वर्ष का अनुभव. राष्ट्रीय राजधानी, पंजाब , हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में रिपोर्टिंग की.एनडीटीवी, दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका और पीटीसी न्यूज में संपादकीय पदों पर रहे. न्यूज़ 18 से पहले इटीवी भारत में रीजनल एडिटर थे. कृषि, ग्रामीण विकास और पब्लिक पॉलिसी में दिलचस्पी.
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