DNA ANALYSIS: हमसे ही कमाएंगे, हमको ही सिखाएंगे; देश संविधान से चलेगा या Tech कंपनियों से?
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DNA ANALYSIS: हमसे ही कमाएंगे, हमको ही सिखाएंगे; देश संविधान से चलेगा या Tech कंपनियों से?

नए आईटी कानून (News IT Rules) को लेकर सरकार और सोशल मीडिया कंपनियों के बीच युद्ध छिड़ गया है. वॉट्सऐप ने तो दिल्ली हाई कोर्ट में भारत सरकार के खिलाफ याचिका तक दायर कर दी है. 

DNA ANALYSIS: हमसे ही कमाएंगे, हमको ही सिखाएंगे; देश संविधान से चलेगा या Tech कंपनियों से?

नई दिल्ली: भारत पर अंग्रेजों ने 190 वर्षों तक शासन किया था. इस शासन के लिए अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) ने 100 वर्षों तक भारत में ही रह कर इंतजार भी किया. वैसे कहने के लिए तो ईस्ट इंडिया कंपनी एक व्यापारिक कंपनी थी, लेकिन उसके पास ढाई लाख सैनिकों की एक फौज थी. सोचिए भारत में व्यापार करने के लिए आई इस कंपनी के पास अपनी इतनी बड़ी सेना थी.

नए जमाने की ईस्ट इंडिया कंपनी

उस समय इस सेना ने ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत में विस्तार संभव किया. जहां ये कंपनी व्यापार कर पाती थी, वहां युद्ध नहीं होता था और जहां व्यापार नहीं कर पाती थी, वहां इस सेना की मदद से व्यापार को संभव बनाया जाता था. इस तरह धीरे-धीरे इस कंपनी ने भारत पर अपने शासन को सुनिश्चित किया और 190 वर्षों तक भारत को अपना गुलाम बना कर रखा. आज भी कुछ ऐसा ही हो रहा है. आज बड़ी सोशल मीडिया कंपनियां (Social Media Organization) कहने के लिए तो भारत में व्यापार कर रही हैं, लेकिन ये कंपनियां खुद को हमारे देश के कानून और संविधान से भी ऊपर मानती हैं. आप चाहें तो इन कंपनियों को नए जमाने की ईस्ट इंडिया कंपनी कह सकते हैं.

IT कानून पर सरकार vs सोशल मीडिया की स्थिति

इस समय बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों और सरकार के बीच टकराव की स्थिति बनी हुई है. नए नियमों को लेकर वॉट्सऐप (WhatsApp) ने भारत सरकार के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) में मुकदमा कर दिया है. वहीं फेसबुक (Facebook) ने इन नियमों को 90 दिनों बाद भी लागू नहीं किया है, और ट्विटर (Twitter) कंपनी भारत सरकार को बता रही है कि अभिव्यक्ति की आजादी क्या होती है.

सोशल मीडिया कंपनियों का 'डबल स्टैंडर्ड'

सोचिए पहले तो ये विदेशी कंपनियां भारत में व्यापार करने के लिए आईं, फिर इन्होंने भारत में बड़ा बिजनेस मॉडल खड़ा कर लिया. यूजर्स की संख्या करोड़ों में कर ली और आज ये इतनी बड़ी हो गई हैं कि ये भारतीय संविधान (Constitution of India) के अनुरूप चलने वाली शासन व्यवस्था को चुनौती दे रही हैं. इसलिए आज हम इन कंपनियों के चरित्र का विश्लेषण आपके लिए करेंगे और आपको इन कंपनियों के डबल स्टैंडर्ड्स के बारे में भी बताएंगे.

पहले जानिए आखिर ये पूरा विवाद क्या है?

इस पूरे विवाद की जड़ में है 25 फरवरी को भारत सरकार द्वारा बनाए गए नए नियम. सरकार के मुताबिक, ये नए नियम इन सोशल मीडिया कंपनियों को 3 महीने में लागू करने थे, लेकिन 25 मई की तारीख का सरकार द्वारा दिया गया. ये समय समाप्त हो गया. अब जब इन कंपनियों को लगा कि सरकार का आदेश नहीं मानने से इनकी दुकानें भारत में बंद हो जाएंगी तो इन कंपनियों ने दूसरा रास्ता चुना. 

'यूजर्स की जासूसी करना चाहती है सरकार'

वॉट्सऐप ने दिल्ली हाई कोर्ट में भारत सरकार के खिलाफ ही मुकदमा दाखिल कर दिया. इसमें वॉट्सऐप ने भारत सरकार द्वारा की गई यूजर ट्रेसेब्लिटी (User Traceability) की मांग को असंवैधानिक बताया और दलील दी कि नए नियमों को अगर उसने लागू किया तो इससे उसके यूजर्स की प्राइवेसी खत्म हो जाएगी, और सरकार द्वारा लोगों की जासूसी का खतरा भी बढ़ जाएगा. ये सब बातें वॉट्सऐप की तरफ से कही गई हैं. क्योंकि वॉट्सऐप को पता था कि उसने नए नियमों को लागू नहीं किया है और इससे उसकी दुकान बन्द हो सकती है.

फेसबुक-ट्विटर ने चर्चा के बहाने टाली बात

हालांकि वॉट्सऐप की पेरेंट कंपनी फेसबुक (Facebook) ने कार्रवाई से बचने के लिए दूसरा रास्ता अपनाया. फेसबुक ने कहा है कि वो कुछ प्वाइंट पर सरकार से चर्चा करना चाहती है और इस चर्चा के बाद ही नए नियमों पर कोई निर्णय लिया जाएगा. कुछ ऐसा ही ट्विटर (Twitter) ने भी किया. आज ट्विटर को भारत सरकार की तरफ से भी एक जवाब आया है, जिसमें ट्विटर के दोहरे मापदंडों के बारे में सरकार ने सिलसिलेवार तरीके से जानकारी दी है और आज हम आपको इसके बारे में भी बताएंगे. लेकिन पहले आपको उन नए नियमों के बारे में बताते हैं, जिन पर इन कंपनियों ने 3 महीने में भी कोई कदम नहीं उठाया.

नए IT Rules क्या हैं? जिन पर छिड़ा विवाद

1. नए आईटी रूलस में सबसे महत्वपूर्ण है सोशल मीडिया यूजर्स की शिकायतों के लिए एक सिस्टम बनाना और तीन नए अधिकारियों की नियुक्ति करना. इनमें पहला पद है मुख्य अनुपालन अधिकारी (Chief Compliance Officer) का - सरकार ने 25 फरवरी को कहा था कि इन कंपनियों की तरफ से इस पद पर जिस अधिकारी की नियुक्ति होगी, वो ये सुनिश्चित करेगा कि लोगों की शिकायतों पर कानून के तहत ही कदम उठाए जाएं. ये ऑफिसर भारत में रह कर ही काम कर सकेगा.

2. दूसरा पद है नोडल कॉन्टेक्ट ऑफिसर (Nodal Contact Officer) का- इस पद पर इन कंपनियों को ऐसे अधिकारी की नियुक्ति करनी थी, जो भारत की जांच एजेंसियों और मंत्रालयों के सम्पर्क में रहता. 

3. तीसरी पद है शिकायत अधिकारी (Grievance Officer) का - इस पद पर नियुक्त होने वाले अधिकारी की जिम्मेदारी थी कि 24 घंटे के अन्दर शिकायतों पर ऐक्शन लिया जाए और 15 दिनों के अन्दर शिकायत का निवारण किया जाए.

यानी नए नियमों के तहत सोशल मीडिया कंपनियों को ये तीन नए पद बनाने थे और इन पर अधिकारियों की नियुक्ति करनी थी. लेकिन फेसबुक, वॉट्सऐप ट्विटर, इंस्टाग्राम, टेलीग्राम, सिग्नल और स्नेपचेट जैसी तमाम कंपनियों ने इस पर कोई कदम नहीं उठाया. केवल भारतीय सोशल मीडिया कंपनी (Koo) ने ही इन अधिकारियों की नियुक्ति की, जिसके 60 लाख यूजर्स हैं. 25 फरवरी के इस आदेश में इन कंपनियों से ये भी कहा गया था कि अगर कोर्ट या सरकार द्वारा इन कंपनियों को इनके सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से कोई कंटेंट हटाने का निर्देश मिलता है तो इन कंपनियों को 36 घंटे में उसका पालन करना होगा. लेकिन इस पर भी इन कंपनियों ने सहमति नहीं दी. 

क्या होती है User Traceability?

इस आदेश में एक महत्वपूर्ण निर्देश इन कंपनियों कंपनियों के लिए ये था, कि इन्हें यूजर ट्रेसेब्लिटी को सरकार और जांच एजेंसियों के लिए उपलब्ध कराना होगा. यूजर ट्रेसेब्लिटी को आप ऐसे समझिए कि किसी व्यक्ति ने कोई खतरनाक जानकारी इन प्लेटफॉर्म पर शेयर की और फिर वो जानकारी कई यूजर्स के बीच फैल गई तो इन कंपनियों को ये बताना होगा कि वो पहला व्यक्ति कौन था, जिसने इस जानकारी को इनके प्लेटफॉर्म पर डाला था. लेकिन इसी यूजर ट्रेसेब्लिटी को लेकर सरकार और वॉट्सऐप के बीच टकराव की स्थिति बन गई है. वॉट्सऐप का पक्ष हम आपको पांच प्वाइंट में बताते हैं, और फिर हम इन प्वाइंट की सच्चाई आपको बताएंगे.

1. हाई कोर्ट में वॉट्सऐप द्वारा भारत सरकार पर किया गया मुकदमा वर्ष 2017 में आए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के एक फैसले पर आधारित है. इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार को नागरिकों का मौलिक अधिकार माना था. वॉट्सऐप ने इस फैसले को अपने केस का आधार बनाया है. लेकिन वॉट्सऐप ऐसा करते हुए ये भूल गया कि भारत का संविधान मौलिक अधिकारों को असीमित नहीं मानता. ऐसी स्थिति में सरकार को कार्रवाई के अधिकार देता है. लेकिन वॉट्सऐप इसकी आड़ लेकर बचना चाहता है.

2. वॉट्सऐप की दलील है कि अगर वो किसी मैसेज और जानकारी के फर्स्ट ओरिजनेटर (First Originator) के बारे में सरकार को सूचित करता है, तो इससे उसकी End to End Encryption Policy का उल्लंघन होगा. असल में End to End Encryption एक तरह का लॉक है. जैसे वॉट्सऐप पर कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को मैसेज भेजता है तो उस मेसेज को दो ही लोग पढ़ सकते हैं. पहला भेजने वाला और दूसरा व्यक्ति वो, जिसे ये मैसेज भेजा गया है. वॉट्सऐप का कहना है कि वो खुद इन मैसेज को नहीं पढ़ सकता. ऐसे में अगर फर्स्ट मैसेज ओरिजनेटर का पता लगाना होगा तो इस लॉक को तोड़ना पड़ेगा. कंपनी की दलील है कि इससे उसके यूजर्स की प्राइवेसी के साथ समझौता करना पड़ेगा. हालांकि आपको जानकर आश्चर्य होगा कि वर्ष 2016 से पहले End to End Encryption का ये लॉक नहीं था. वॉट्सऐप ने ये लॉक 2016 में लागू किया था. आज ये फीचर सभी मैसेजिग ऐप्स में मौजूद है. जैसे टेलीग्राम, सिग्नल, जूम, स्नेपचैट जैसे ऐप्स.

3. वॉट्सऐप का दावा है कि किसी एक मैसेज का फर्स्ट ओरिजनेटरमैसेज पता करने के लिए उसे वॉट्सऐप पर भेजे गए हर मैसेज को को एक यूनिक स्टैम्क देनी होगी और उस मैसेज को अपने सर्वर पर स्टोर करके रखना होगा. ऐसी स्थिति में हर मैसेज को पढ़ना संभव हो जाएगा, जिससे यूजर्स की प्राइवेसी खत्म हो जाएगी. ये हम नहीं कह रहे, बल्कि वॉट्सऐप का ऐसा कहना है लेकिन, ये दलील कितनी सही है, इसका सच भी हम आपको बताएंगे.

4. वॉट्सऐप की एक और दलील ये है कि अगर उसने नए नियमों को मान लिया तो इससे उसे हर देश के लिए अलग वॉट्सऐप बनाना पड़ेगा. वो ऐसे कि अगर भारत में वॉट्सऐप का कोई यूजर दूसरे देश में अपने किसी साथी को मैसेज भेजता है तो इससे उस देश में तो उसकी चैट लॉक होगी. लेकिन भारत में ऐसा नहीं होगा. ये दलील वॉट्सऐप की है, लेकिन इसका सच भी हम आपको बताएं.

5. वॉट्सऐप का एक पक्ष ये भी है कि यूजर ट्रेसेब्लिटी के लिए उसे अपने यूजर्स का अधिक डेटा इकट्ठा करना पड़ेगा और कोई भी यूजर नहीं चाहता कि कंपनी उससे जुड़े अधिक डेटा को इकट्ठा करे. ये सारी बातें वॉट्सऐप ने कही हैं लेकिन इनमें कितना दम है, अब वो समझिए. 

वॉट्सऐप के दावों में कितना सच?

भारत सरकार का कहना है कि User Traceability का मतलब ये नहीं है कि सरकार सभी यूजर्स की जानकारी मांग रही है. ये एक झूठ है. सच ये है कि गंभीर अपराधों में जैसे आतंकवादी से जुड़ी कोई गतिविधि है या देश की सुरक्षा को लेकर कोई खतरा है तो ऐसे गंभीर मामलों में ही फर्स्ट मैसेज ओरिजनेटर की जानकारी कंपनी से साझा करने के लिए कहा जाएगा. ये सभी मामले में नहीं होगा. 

1. जबकि वॉट्सऐप ये दलील दे रहा है कि सभी यूजर्स की प्राइवेसी को खतरा होगा. जो कि गलत है.

2. नए नियम इन कंपनियों के कामकाज पर कोई असर नहीं डालेंगे और इससे इन कंपनियों के यूजर पर भी कोई प्रभाव नहीं होगा.

3. भारत अकेले ऐसा देश नहीं है, जिसने वॉट्सऐप से ऐसी जानकारी की मांग की है. भारत के अलावा ब्राज़ील, न्यू ज़ीलैंड, कनाडा, ब्रिटेन, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया भी इस तरह की जानकारी की मांग कर चुके हैं यही नहीं, जुलाई 2019 में ब्रिटेन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड और जापान की सरकारों ने एक संयुक्त बयान जारी किया था, जिसमें उन्होंने सोशल मीडिया कंपनियों से फर्स्ट ओरिजनेटर से जुड़ी जानकारी साझा करने की मांग की थी. लेकिन ये कंपनियां खुद को इतना बड़ा समझती हैं कि इन सभी देशों के संयुक्त बयान का भी इन पर कोई असर नहीं पड़ा.

4. भारत सरकार देश में कानून व्यवस्था के लिए जिम्मेदार होती है. ऐसे ये कंपनियां प्राइवेसी के नाम पर सरकार को उसका काम करने से नहीं रोक सकती. सोचिए अगर कल को ये सोशल मीडिया कंपनी देश पर किसी हमले का कारण बनती हैं तो जिम्मेदार कौन होगा? ऐसी स्थिति में ये कंपनियां अपना पल्ला झाड़ लेंगी और सारा दोष सरकार पर डाल देंगी.

5. किसी भी कंपनी को देश के कानून (Law Of The Land) के तहत काम करना होता है. यानी जिस देश में ये कंपनियां कामकाज करती हैं, वहां के कानूनों को इन्हें मानना ही पड़ता है. सरकार का कहना है कि ये इन कंपनियों की जिम्मेदारी है कि वो ऐसा सॉफ्टवेयर बनाएं, जिसमें यूजर्स की प्राइवेसी भी सुनिश्चित हो और गैर कानूनी गतिविधियां करने वाले भी पकड़े जा सकें. ये कंपनियां इस तरह के सॉफ्टवेयर ना बना कर, उल्टा अपने यूजर्स की प्राइवेसी और अभिव्यक्ति की आड़ ले रही हैं. इसे ही आपको आज समझना है.

WhatsApp का डबल स्टैंडर्ड बताएगा कहानी

एक तरफ वॉट्सऐप का कहना ये है कि अगर वो फर्स्ट ओरिजनेटर से जुड़ी जानकारी सरकार के साथ शेयर करता है तो इससे यूजर्स की प्राइवेसी का उल्लंघन होगा और उसे अपने यूजर्स का अधिक डेटा इकट्ठा करना पड़ेगा. जबकि दूसरी तरफ वॉट्सऐप अपनी नई पॉलिसी के तहत अपने यूजर्स का डेटा, अपनी पेरेंट कंपनी फेसबुक को मार्केटिंग और विज्ञापन के लिए देना चाहता है. इस मामले में वॉट्सऐप पर उसके यूजर्स से जुड़ी जानकारियां विज्ञापन कंपनियों को बेचने के आरोप हैं. ये मामला कोर्ट में विचाराधीन है. यानी ये कंपनियां लोगों की प्राइवेसी को सिर्फ हथियार की तरह इस्तेमाल करना चाहती हैं. यहां एक महत्वपूर्ण बात है कि वॉट्सऐप, फेसबुक की ही कंपनी है, और फेसबुक का इतिहास अपने यूजर्स की प्राइवेसी को लेकर अच्छा नहीं है. इसे आप कुछ उदाहरणों से समझिए

डेटा हैंडलिंग को लेकर फेसबुक का इतिहास

कैम्ब्रिज एनालिटिका (Cambridge Analytica) का मामला आपको याद होगा, जिसमें फेसबुक पर आरोप लगा था कि उसने अपने 5 करोड़ यूजर्स का डेटा ब्रिटेन की एक कंसल्टिंग फर्म कैम्ब्रिज एनालिटिका को बेच दिया था. इस फर्म ने कई देशों के चुनावों में इस डेटा का इस्तेमाल किया था. भारतीय जांच एजेंसी (CBI) ने भी इसी साल जनवरी महीने में इस फर्म के खिलाफ केस दर्ज किया है. सीबीआई के मुताबिक, इस कंसल्टिंग फर्म ने भारत के साढ़े पांच लाख फेसबुक यूजर्स का डेटा गैर कानूनी तरीके से स्टोर किया और भारत में चुनावों को प्रभावित करने की कोशिश की. 

नियम लागू करने के आखिरी दिन पहुंची कोर्ट

यानी एक तरफ ये कंपनियां अपने यूजर्स की प्राइवेसी की बातें करती हैं और दूसरी तरफ इसी डेटा का व्यापार करती हैं. एक तरफ लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी की बात करती हैं और दूसरी तरफ इन्हीं कंपनियों के यूजर्स का डेटा चुनावों में इस्तेमाल होता है तो ये अपना पल्ला झाड़ लेती हैं. यहां एक बड़ी बात ये है कि अक्टूबर 2018 से भारत सरकार की वॉट्सऐप से इस विषय को लेकर बातचीत चल रही थी. लेकिन वॉट्सऐप ने कभी अपने यूजर्स की प्राइवेसी को लेकर चर्चा नहीं की, लेकिन जब इन नियमों को लागू करने का समय खत्म हो गया हुआ तो वो आखिरी दिन कोर्ट चली गई. इसी से आप इन कंपनियों की मानसिकता को समझ सकते हैं. आप इसमें कुछ आंकड़ों को भी मदद ले सकते हैं.

फ्री सर्विस देकर भी करोड़ों कमा रहीं कंपनियां

अकेले भारत में फेसबुक के 41 करोड़ यूजर्स हैं. जबकि वॉट्सऐप के 53 करोड़ यूजर्स हैं, इंस्टाग्राम के के 21 करोड़ यूजर्स हैं. ये तीनों प्लेटफॉर्म एक ही कंपनी फेसबुक के हैं. यानी इस हिसाब से देखें तो भारत में अलग-अलग प्लेटफॉर्मस के माध्यम से फेसबुक के पास 115 करोड़ यूजर्स की ताकत है. इसी ताकत के बल पर ये कंपनियां मनमानी करती हैं. सोचिए कहने के लिए तो ये कंपनियां मुफ्त में अपनी सेवाएं देती हैं. ना तो फेसबुक इस्तेमाल करने के लिए लोगों को पैसे देने होते हैं, और ना ही वॉट्सऐप और इंस्टाग्राम की सेवाओं के लिए किसी यूजर्स को कोई रकम चुकानी होती है. लेकिन फिर भी ये कंपनियां लाखों करोड़ों रुपये की हैं.

143 देशों की GDP से ज्यादा पैसा कमा रहीं SMO

फेसबुक कंपनी की नेट वर्थ 280 बिलियन डॉलर है यानी 21 लाख करोड़ रुपये है. सोचिए 21 लाख करोड़ रुपये. ये कंपनियां इतना पैसा तब कमा रही हैं, जब इनकी सेवाएं मुफ्त हैं. आप चाहें तो इसे कुछ और आंकड़ों से समझ सकते हैं. दुनिया में इस समय इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या 466 करोड़ है और इन 466 करोड़ लोगों पर मुट्ठीभर टेक्नोलॉजी कंपनियों का व्यापार टिका हुआ है. इस समय दुनिया की 5 बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियां हैं. फेसबुक, अमेजन, ऐपल, माइक्रोसॉफ्ट और गूगल. इन पांच कंपनियों की नेट वर्थ लगभग 460 लाख करोड़ रुपए है. दुनिया में कुल 195 देश हैं, जिनमें से 143 देशों की कुल GDP भी इन 5 कंपनियों से कम है.

SMO के लिए सबसे बड़ा डिजिटल बाजार है भारत

जापान जैसे समृद्ध देश की GDP सिर्फ 371 लाख करोड़ रुपए है, और भारत की GDP इन कंपनियों की Net Worth के मुकाबले काफी कम है. अगर सिर्फ भारत की बात करें तो वर्ष 2020 में लोगों ने अपने स्मार्टफोन पर हर दिन साढ़े चार घंटे से ज्यादा समय बिताया. जबकि वर्ष 2019 में ये समय सिर्फ 3 घंटे था. इसका मतलब है कि पिछले एक वर्ष में आपने 68 दिन अपने स्मार्टफोन को दिए. यही नहीं भारत में ऐप डाउनलोड भी पिछले वर्ष के मुकाबले 30 प्रतिशत ज्यादा किए गए हैं. ऐप्स डाउनलोड के मामले में पूरी दुनिया में भारत दूसरे स्थान पर है. और चीन पहले नंबर पर है. WhatsApp और Facebook भारत में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले Apps में पहले और दूसरे नंबर पर हैं. सरल शब्दों में इसका मतलब ये है कि भारत अब इन कंपनियों के लिए सबसे बड़ा डिजिटल बाजार बन गया है. इसी वजह से शायद ये कंपनियां ईस्ट इंडिया कम्पनी की तरह व्यवहार करने लगी हैं. 

ट्विटर ने मांगी अभिव्यक्ति की आजादी, मिला जवाब

ट्विटर ने एक प्रेस रिलीज जारी की थी, जिसमें उसने भारत में काम करने वाले अपने कर्मचारियों की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई थी, और भारत में अभिव्यक्ति की आजादी को खतरा बताया था. इसके अलावा ट्विटर ने टूल किट मामले में दिल्ली पुलिस द्वारा उसके दफ्तर पर मारे गए छापे को लेकर भी प्रश्न उठाए और ये कहा कि इस कार्रवाई से उसे डराने और धमकाने की कोशिश हो रही है. इस प्रेस रिलीज से ट्विटर ने खूब सुर्खियां बंटोरी और कंपनी ऐसा चाहती भी थी. लेकिन अब भारत सरकार की तरफ से ट्विटर को करार जवाब आया है, जो स्वाद में ट्विटर को बहुत कड़वा लग सकता है. हम सरल शब्दों में सरकार के इस जवाब को 10 Points में आपके लिए डिकोड करेंगे.

1. ट्विटर ने भारत में अभिव्यक्ति की आजादी को संकट में बताया था, लेकिन अब सरकार ने कहा है कि मुनाफे के लिए बनाई गई एक विदेशी कंपनी को भारत को ये सिखाने की जरूरत नहीं है कि अभिव्यक्ति की आजादी को कैसे सुरक्षित रखा है. सरकार ने कहा है कि भारत में लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी का सदियों पुराना इतिहास रहा है और वो लोगों के संवैधानिक अधिकारों को लेकर प्रतिबद्ध है. यानी पहला प्वाइंट ये है कि एक विदेशी कंपनी भारत को ये नहीं सिखाएगी कि अभिव्यक्ति की आजादी क्या होती है.

2. केंद्र सरकार ने ट्विटर को याद दिलाया है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और ट्विटर अपनी दबाव बनाने वाली नीतियों से भारत के कानून और संवैधानिक व्यवस्था को झुका नहीं सकता.

3. केंद्र सरकार ने ट्विटर से ये सवाल भी पूछा है कि अगर वो अपने भारतीय यूजर्स के प्रति ईमानदार है तो फिर उसने नए नियमों के तहत शिकायत अधिकारियों की नियुक्ति क्यों नहीं की? इस चिट्ठी में ये भी लिखा है कि ट्विटर भारत से करोड़ों रुपये का व्यापार करता है, लेकिन इसके बावजूद इन अधिकारियों की नियुक्ति में आनाकानी कर रहा है. हर फैसला अपने अमेरिकी मुख्यालय से पूछकर लेता है. सोचिए कमाता हमारे देश के लोगों से है, लेकिन चलता अमेरिकी मुख्यालय के आदेशों पर है.

4. ट्विटर ये दावा करता है कि वो अभिव्यक्ति की आजादी का समर्थक है, लेकिन उसकी खुद की नीतिया इसे लेकर काफी अस्पष्ट हैं. उदाहरण के लिए उसने बिना ठोस वजह बताए कुछ खास तरह के ट्वीट्स और अकाउंट्स डिलीट कर दिए और कुछ लोगों का अकाउंट हमेशा के लिए बंद कर दिया. लेकिन जब सरकार फेक न्यूज फैलने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करती है तो ट्विटर अभिव्यक्ति की आड़ लेकर छिपा जाता है.

5. केंद्र सरकार ने ट्विटर के दोहरे मापदंडों की भी पोल खोली है. सरकार ने ट्विटर को याद दिलाया है कि पिछले वर्ष जब भारत और चीन सीमा विवाद को सुलझाने के लिए शांतिपूर्ण वार्ता कर रहे थे तो उस समय ट्विटर ने लद्दाख को चीन का हिस्सा दिखाया था. कई शिकायतों के बाद भी इसे सुधारने में समय लगा दिया था.

6. जब अमेरिका के कैपिटल हिल (Capitol Hill) में हिंसा हुई तो ट्विटर ने अपने आप उन लोगों के खिलाफ ऐक्शन लिया जो हिंसा फैला रहे थे. लेकिन जब 26 जनवरी को दिल्ली के लाल किला में हिंसा भड़की तो ट्विटर ने सरकार के आदेश की उपेक्षा की.

7. भारत सरकार ने कहा है कि आज ट्विटर Fake News फैलाने का प्लेटफॉर्म बन गया है. ट्विटर के माध्यम से बड़े स्तर पर कोरोना वैक्सीन को लेकर फेक न्यूज फैलाई गईं लेकिन कंपनी ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की.

8. ट्विटर कहता है कि वो भारत के लोगों को लेकर प्रतिबद्ध है. जबकि ऐसा नहीं है. इसे इस उदाहरण से समझिए. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, कोरोना या उसके किसी वैरिएंट को किसी देश से जोड़ कर नहीं देखा जा सकता. लेकिन इसके बावजूद ट्विटर पर कोरोना के B1617 वैरिएंट को इंडियन वैरिएंट कहा गया. लेकिन ट्विटर ने कोई कार्रवाई नहीं की.

9. केंद्र सरकार ने ट्विटर के दावे की पोल खोलते हुए बताया है कि भारत में ट्विटर का स्टाफ पूरी तरह सुरक्षित है.

10. भारत सरकार ने Twitter को झूठा बताया है.

आंकड़ों से समझिए सोशल मीडिया की ताकत

भारत में ट्विटर के 1 करोड़ 75 लाख यूजर्स हैं और 2019 में कंपनी का अकेले भारत में 57 करोड़ रुपये रेवेन्यू था. यानी ये कंपनियां कमाती भी भारत से हैं और बदनाम भी इसी देश को करती हैं. अब हम आपको सोशल मीडिया से जुड़ी कुछ और बातों के जरिए ये बताना चाहते हैं कि एक मिनट में कैसे सबकुछ बदल सकता है.

एक मिनट में Youtube पर 500 घंटे के वीडियो अपलोड हो जाते हैं. ये आंकड़ा पूरी दुनिया का है. ट्विटर पर हर एक मिनट में 319 नए यूजर्स अपना अकाउंट बनाते हैं. फेसबुक पर हर मिनट डेढ़ लाख मैसेज शेयर होते हैं. वॉट्सऐप पर 4 करोड़ से ज्यादा मैसेज सिर्फ एक मिनट में भेजे जाते हैं. ये संख्या क्षेत्रफल के लिहाज से दुनिया के सबसे बड़े देश कनाडा की कुल आबादी से भी ज्यादा है. कनाडा की कुल आबादी साढ़े तीन करोड़ ही है. 

फेसबुक पर पर हर मिनट लगभग डेढ़ लाख तस्वीरें अपलोड की जाती हैं. हर मिनट दुनिया में 13 लाख लोग Voice Call करते हैं. इंस्टग्राम पर हर मिनट में 1 लाख 38 हजार Ads पर लोग क्लिक करते हैं. LINKEDIN पर लगभग 70 हजार लोग नौकरी के लिए अप्लाई करते हैं. नेटफ्लिक्स पर एक मिनट में करीब 4 लाख घंटे के वीडियो देखे जाते हैं. Zoom App पर हर मिनट 2 लाख लोग वीडियो कॉल करते हैं. और Instagram पर सिर्फ 60 सेकेंड में 3 लाख 47 हज़ार 222 Videos शेयर किए जाते हैं. अब आप खुद सोचिए सोशल मीडिया कितना शक्तिशाली है.

नए IT नियमों को लागू करने की जरूरत क्यों है?

आज आपको ये भी समझना चाहिए कि भारत सरकार द्वारा बनाए गए जिन नियमों को ये कंपनियां लागू नहीं करना चाहती, उन नियमों की भारत को सख्त जरूरत क्यों है? इसे आप अमेरिका के Massachusetts Institute of Technology की एक रिसर्च से समझ सकते हैं. इसके मुताबिक सोशल मीडिया पर सच्ची और सही जानकारी वाली खबरों के मुकाबले फेक न्यूज 70 गुना तेजी से फैलती है और फेक न्यूज ज्यादा बार रिट्वीट की जाती है. इसी तरह सही खबरों की तुलना में फेक न्यूज 6 गुना तेजी से 1500 लोगों तक पहुंचती है. यही नहीं, तथ्यों से ज्यादा गलत जानकारी को शेयर किया जाता है. ये आंकड़े बताते हैं कि सोशल मीडिया का दुरुपयोग रोकने के लिए इस तरह के कड़े नियमों की भारत को सबसे ज्यादा आवश्यकता है. लेकिन ये कंपनियां कभी नहीं चाहती कि ये नए नियम लागू हों.

नियम ना मानने के पीछे असली कारण क्या है?

असल में Fake News इन कंपनियों के लिए एक Fuel यानी ईंधन की तरह है. फेक न्यूज कंटेंट के हिट होने की ज्यादा संभावना होती है और ऐसा कंटेंट ज्यादा लोगों को इन प्लेटफॉर्म की तरफ खींचता है. दूसरी बात इन कंपनियों की सेवाएं मुफ्त होती हैं. इसी चक्कर में लोगों को लगता है कि अगर वो इन प्लेटफॉर्म के साथ जुड़ गए तो उनका क्या जाएगा. जबकि ऐसा नहीं होता. सच्चाई तो ये है कि जब आप किसी कंपनी की सेवाएं मुफ्त में लेते हैं तो आप खुद उसी कंपनी के एक प्रोडक्ट बन जाते हैं यानी इन कंपनियों के लिए आप एक प्रोडक्ट हैं. ये कंपनियां आपसे जुड़ा ड़ेटा बड़ी-बड़ी कंपनियों को बेचती हैं और उससे मुनाफा कमाती हैं.

अमेरिका की प्रिंसटन यूनिवर्सिटी (Princeton University) के मुताबिक, फेक न्यूज का सबसे पसंदीदा माध्यम फेसबुक है. इस पर जो लिंक्स शेयर किए जाते हैं, उनमें 6 प्रतिशत ही सही वेबसाइट्स पर ले जाते हैं, जबकि 15 प्रतिशत गलत वेबसाइट्स पर ले जाते हैं. इससे लोगों को आर्थिक नुकसान होता है. इन लिंक्स के माध्यम से अक्सर साइबर अपराधी लोगों के बैंक अकाउंट्स से उनकी जमा पूंजी निकाल लेते हैं. आज आपको ये जानकर भी आश्चर्य होगा कि फेसबुक पर यूजर्स जहां सही खबरों पर औसतन 42 सेकेंड तक नजर रखते हैं जबकि फेक न्यूज पर औसतन 64 सेकेंड्स तक नजरें रखते हैं. कहने का मतलब ये है कि अगर फेक न्यूज की दुकानें बन्द हो गईं तो इन कंपनियों की नोट छापने की मशीन भी बंद हो जाएगी और यही आज का सबसे बड़ा सत्य है. इसीलिए ये कंपनियां नए नियमों से इतनी परेशानी हो रही है.

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