इलाज के तरीके पर सवाल:प्लाज्मा थैरेपी कोरोना के मरीजों पर कारगर नहीं, क्लीनिकल मैनेजमेंट प्रोटोकॉल से हटाया जा सकता है

नई दिल्ली3 वर्ष पहले
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कोरोना मरीजों को दी जा रही प्लाज्मा थैरेपी को क्लीनिकल मैनेजमेंट प्रोटोकॉल से हटाया जा सकता है। कई मामलों में यह थैरेपी कारगर नहीं रही है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की नेशनल टास्क फोर्स की शुक्रवार को हुई बैठक में इस पर चर्चा हुई थी। सूत्रों के मुताबिक इस मामले पर जल्द ही आखिरी फैसला लिया जाएगा। ICMR इस मामले पर एडवाइजरी जारी कर सकती है।

देश में कोरोना के बढ़ते मामलों के साथ प्लाज्मा डोनर की मांग में भी तेजी आई है। यहां तक ​​​​कि एक्सपर्ट्स भी कोरोना मरीजों के लिए प्लाज्मा थैरेपी की इफेक्टिवनेस पर चिंता जताते रहे हैं। पहले भी मेडिकल प्रोफेशनल्स ने प्लाज्मा थैरेपी को अप्रचलित करार दिया था।

खूब तलाशे जा रहे प्लाज्मा डोनर
ICMR ने भी पिछले साल दावा किया था कि कोरोना से जुड़ी मौतों को कम करने में प्लाज्मा थैरेपी से कोई मदद नहीं मिली है। इसके बावजूद सोशल मीडिया पर प्लाज्मा डोनेट करने वालों को खूब तलाशा जा रहा है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल खुद लोगों से कह रहे हैं कि कोरोना से रिकवर हो चुके लोगों को प्लाज्मा डोनेट करना चाहिए, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों की जान बचाई जा सके।

क्या है प्लाज्मा थैरेपी?
कॉन्वल्सेंट प्लाज्मा थैरेपी एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें इन्फेक्शन से रिकवर हुए व्यक्ति के शरीर से खून लिया जाता है। खून का पीला तरल हिस्सा निकाला जाता है। इसे इन्फेक्टेड मरीज के शरीर में चढ़ाया जाता है। थ्योरी कहती है कि जिस व्यक्ति ने इन्फेक्शन से मुकाबला किया है उसके शरीर में एंटीबॉडी बने होंगे। यह एंटीबॉडी खून के साथ जाकर इन्फेक्टेड व्यक्ति के इम्यून सिस्टम को मजबूती देंगे। इससे इन्फेक्टेड व्यक्ति के गंभीर लक्षण कमजोर होते हैं और मरीज की जान बच जाती है।

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