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झारखंड के 32 गांवों से ग्राउंड रिपोर्ट:पांच दिन में जाना संथाली आदिवासी और कुरमी बहुल इलाकों का हाल, इनमें 20 गांवों के 3834 परिवारों में एक भी संक्रमित नहीं मिला

बोकारो3 वर्ष पहलेलेखक: राजेश सिंह देव/विपिन मुखर्जी
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एक भी ग्रामीण की पॉजिटिव रिपोर्ट नहीं आई। - Dainik Bhaskar
एक भी ग्रामीण की पॉजिटिव रिपोर्ट नहीं आई।

महामारी के दौर में बोकारो जिले के 20 गांवों की 30 हजार आबादी तक कोरोना नहीं फटक पाया है। शुद्ध आबोहवा, स्वच्छ भोजन, रहन-सहन, स्वच्छता और कड़ी मेहनत के कारण यहां हर व्यक्ति रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्युनिटी) से भरपूर है। दैनिक भास्कर ने 5 दिनों में संथाल आदिवासी और कुरमी बहुल 32 गांवों का हाल जाना। इनमें 20 गांवों के 3834 परिवारों में एक भी संक्रमित नहीं मिला।

मुखिया, महिला समिति सदस्य, सेविका से मिलकर जानकारी ली। डॉक्टर और पर्यावरणविद‌् से बात की। कसमार, जरीडीह और पेटरवार के गांव शहर की तुलना में ज्यादा जागरूक हैं। जागरुकता ऐसी कि सोशल डिस्टेंसिंग के साथ काम करते हैं। गांव के चौपाल में भी मास्क पहन दूरी बनाकर बैठते हैं।

चिकित्सा प्रभारी बोले- जंगली व पहाड़ी क्षेत्र से काेई पॉजिटिव रिपोर्ट नहीं
कसमार के चिकित्सा प्रभारी डॉ. नवाब ने बताया कि जिले के सभी प्रखंडाें में कंट्रोल रूम बनाए गए हैं। अस्पतालों में हर दिन गांव के 300 से 400 लोग जांच करवा रहे हैं। पहाड़ी व जंगली क्षेत्र के गांवों के एक भी ग्रामीण की पॉजिटिव रिपोर्ट नहीं आई है जबकि शहरी और कोलियरी क्षेत्रों से ज्यादा मरीज आ रहे हैं।

हिसिम-बरइकला की आबादी 2000 से ज्यादा, एक भी पॉजिटिव नहीं
स्वयंसेवी संस्था की अध्यक्ष सुमन देवी ने बताया कि कसमार के हिसिम गांव में 2200 आबादी की तीन बार जांच हुई, लेकिन एक ग्रामीण की रिपोर्ट पॉजिटिव नहीं आई। बरइकला के शिक्षक केदार महतो के अनुसार, गांव की आबादी 2500 है। गांव में तीन बार शिविर लगा। एक भी पॉजिटिव नहीं मिला।

50% आबादी संथाली आदिवासी, 30% कुरमी
20 गांवों में 50% आबादी संथाली आदिवासियों की है, जबकि 30% कुरमी हैं। पेटरवार प्रखंड में चांदो के मुखिया राजेंद्र नायक ने कहा कि यह क्षेत्र जंगलों से घिरा है। यहां आबोहवा शुद्ध है, इसलिए लोगों में इम्युनिटी पावर ज्यादा है।

पर्यावरणविद् बोले- जंगलों में बसे गांवों को हर 12 घंटे दोगुनी ऑक्सीजन
जंगल के करीब बसे गांवों में ऑक्सीजन लेवल काफी हाई रहता है। औसतन 12 घंटे में लोगों को 550 लीटर ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। वहीं जंगल व पहाड़ की तलहटी पर बसे गांव के लोगों को 1100 लीटर ऑक्सीजन मिल रही है। इसलिए यहां कोरोना का प्रभाव कम है। शहरों में वाहन, एसी, उद्योगों के कारण समस्या ज्यादा है। शहरी लोग हाइब्रिड फसल को भोजन के रूप में ज्यादा उपयोग करते हैं। इससे हीमोग्लोबिन कम हो जाता है, तब इम्युनिटी कम हो जाती है।
-गुलाब चंद्र, पर्यावरणविद‌् व दामोदर बचाओ अभियान के संयोजक

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