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132 साल बाद सैन्य डेयरी फार्म्स बंद:देशभर के 130 सेंटर्स पर 25 हजार गायें थीं, हर साल 300 करोड़ रुपए होते थे खर्च; 3.5 करोड़ लीटर दूध का होता था सालाना उत्पादन

नई दिल्ली3 वर्ष पहले
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भारतीय सेना ने देशभर में फैले अपने 130 मिलिट्री डेयरी फार्म्स को हमेशा के लिए बंद कर दिया है। इन सेंटर्स पर 25 हजार गायें थीं। इनसे हर साल 3.5 करोड़ लीटर दूध का उत्पादन होता था। सेना के मुताबिक, ये सेंटर्स करीब 20 हजार एकड़ में चलाए जा रहे थे। इनके रखरखाव पर हर साल करीब 300 करोड़ रुपए खर्च होता था।

इसलिए बंद किए गए मिलिट्री फार्म्स
सैन्य सुधारों को देखते हुए इन्हें बंद करने का फैसला लिया गया है। दिल्ली के कैंट में बुधवार को मिलिट्री-फार्म्स रिकॉर्ड्स सेंटर में फ्लैग-सेरेमनी के दौरान इन्हें ‘डिसबैंड’ करने का कार्यक्रम आयोजित किया गया। इन मिलिट्री फार्म्स के दूध और दूसरे मिल्क-प्रोडक्ट्स की सप्लाई सेना की कुल सप्लाई का मात्र 14% रह गई थी।

इसके अलावा, सेना अब सिर्फ कॉम्बेट रोल पर ही अपना ध्यान ज्यादा केंद्रित करना चाहती है। अब सीमावर्ती इलाकों में तैनात सैनिकों को पैक्ड मिल्क की सप्लाई ज्यादा होती है, इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए सैन्य डेयरी फार्म्स को बंद करने का निर्णय लिया गया। इन सेंटर्स पर तैनात सभी सैन्य अधिकारी और सिविल डिफेंस कर्मचारियों को सेना की दूसरी रेजिमेंट्स और यूनिट्स में तैनात कर दिया गया है।

दिल्ली के कैंट में बुधवार को मिलिट्री-फार्म्स रिकॉर्ड्स सेंटर में फ्लैग-सेरेमनी के दौरान इन्हें ‘डिसबैंड’ करने का कार्यक्रम आयोजित किया गया।
दिल्ली के कैंट में बुधवार को मिलिट्री-फार्म्स रिकॉर्ड्स सेंटर में फ्लैग-सेरेमनी के दौरान इन्हें ‘डिसबैंड’ करने का कार्यक्रम आयोजित किया गया।

1889 में ब्रिटिश काल में हुई थी शुरुआत
लेफ्टिनेंट जनरल शशांक मिश्रा ने बताया कि ब्रिटिश काल में इन मिलिट्री डेयरी फार्म्स को सैनिकों को ताजा दूध सप्लाई करने के लिए शुरू किया गया था। पहला मिलिट्री फार्म इलाहाबाद में 1 फरवरी 1889 को खोला गया था। इसके बाद दिल्ली, जबलपुर, रानीखेत, जम्मू, श्रीनगर, लेह, करगिल, झांसी, गुवाहाटी, सिकंदराबाद, लखनऊ, मेरठ, कानपुर, महू, दिमापुर, पठानकोट, ग्वालियर, जोरहट, पानागढ़ सहित कुल 130 जगहों पर इस तरह के मिलिट्री फार्म्स खोले गए।

सेना के रिकॉर्ड्स के मुताबिक, आजादी के दौरान इन फार्म्स में करीब 30 हजार गायें और दूसरे मवेशी थे। 1971 की जंग हो या फिर करगिल युद्ध, उस दौरान भी फ्रंटलाइन पर तैनात सैनिकों को दूध इन्हीं फार्म्स से सप्लाई किया गया था।

आजादी के दौरान इन फार्म्स में करीब 30 हजार गायें और दूसरे मवेशी थे।
आजादी के दौरान इन फार्म्स में करीब 30 हजार गायें और दूसरे मवेशी थे।

सबसे बड़ा क्रॉस-ब्रीडिंग प्रोग्राम चलाया गया
सेना के मुताबिक, एक स्वर्णिम इतिहास के बाद इन मिलिट्री-फार्म्स को बंद करने का फैसला लिया गया है। यहां तक कि कृषि मंत्रालय के साथ मिलकर एक बार इन मिलिट्री फार्म्स ने प्रोजेक्ट-फ्रेसिवल के तहत मवेशियों का दुनिया का सबसे बड़ा क्रॉस-ब्रीडिंग प्रोग्राम चलाया था। हर साल ये मिलिट्री फार्म्स करीब 25 हजार मीट्रिक टन चारे का उत्पादन करते थे। इसे देखते हुए बायो-फ्यूल के लिए भी इन फार्म्स ने रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के साथ करार किया था।

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