तृणमूल कांग्रेस (TMC) के महासचिव पार्थ चटर्जी ने कहा, ‘राज्य के लोग अपनी बेटी चाहते हैं जो पिछले कई साल से मुख्यमंत्री के रूप में उनके साथ है. हम बंगाल में किसी बाहरी को नहीं लाना चाहते हैं.’ टीएमसी नेताओं ने ये भी कहा वो बंगाल की नब्ज को जानती हैं.
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कोलकाता: तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने विधानसभा चुनाव से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को ‘बंगाल की बेटी’(Bengal's Daughter) बताते हुए ‘बंगाल को चाहिए अपनी बेटी’ का नारा दिया और ‘स्थानीय बनाम बाहरी’ के मुद्दे पर बहस को और बढ़ा दिया. इस नारे के साथ बनर्जी की फोटो वाले होर्डिंग समूचे कोलकाता (Kolkata) में लगाये गये हैं, जिसपर बांग्ला भाषा में ‘बांग्ला निजेर मेयकेई चाई (बंगाल को चाहिए अपनी बेटी)’ लिखा है. सत्तारूढ़ पार्टी ने ईएम बाईपास के पास स्थित अपने मुख्यालय से आधिकारिक रूप से इसकी शुरुआत की.
इस सिलसिले में शनिवार को तृणमूल कांग्रेस के महासचिव पार्थ चटर्जी ने कहा, ‘राज्य के लोग अपनी बेटी चाहते हैं जो पिछले कई साल से मुख्यमंत्री के रूप में उनके साथ है. हम बंगाल में किसी बाहरी को नहीं लाना चाहते हैं.’ तृणमूल कांग्रेस की भाजपा के साथ तल्ख राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता चल रही है. वह पार्टी (BJP) के नेताओं को बाहरी कहती है जो राज्य में ‘चुनावी सैर सपाटे’(Election Tourism ) के लिए आए हैं.
टीएमसी (TMC) के राज्यसभा सदस्य सुव्रत बख्शी ने कहा, 'आगामी चुनाव (West Bengal Election 2021) तृणमूल कांग्रेस के लिए कोई बहुत बड़ी बात नहीं है. पूरा देश देख रहा है कि किस तरह संविधान की रक्षा की जा सकती है और चुनाव के नतीजे इसको साबित कर देंगे.' उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने राज्य के लोगों को पिछले 10 साल में किए गए कार्यों का रिपोर्ट कार्ड पहले ही सौंप दिया है. टीएमसी सांसद बख्शी ने विकास कार्यों का हवाला देते हुए कहा, 'अपने लोगों के लिए किस राज्य ने इतना किया है? किसी ने नहीं.'
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वहीं राज्य के पंचायत मंत्री सुव्रत मुखर्जी ने कहा कि जहां अन्य दल मुख्यमंत्री का चेहरा खोजने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, वहीं तृणमूल में ममता बनर्जी हैं जो बंगाल के लोगों की नब्ज को जानती हैं. मुखर्जी ने कहा कि वह महिलाओं की सुरक्षा करना जानती हैं. उन्होंने ये भी कहा कि बनर्जी का ग्रामीण बंगाल से आत्मीय संबंध है और उन्होंने गांवों में 34 लाख घर बनाए, जबकि 96 लाख घरों को बिजली उपलब्ध कराए गए हैं.
मुखर्जी ने कहा कि पिछले दस वर्षों में कुल 1.18 लाख किलोमीटर ग्रामीण सड़कों का निर्माण हुआ.
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