DNA ANALYSIS: Twitter पर क्‍यों फैलाई गई प्रदर्शनकारी किसान की मौत को लेकर ये Fake News?
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DNA ANALYSIS: Twitter पर क्‍यों फैलाई गई प्रदर्शनकारी किसान की मौत को लेकर ये Fake News?

Tractor Parade: किसान की मौत पर जो झूठ सोशल मीडिया पर फैलाया जा रहा था, उसकी पोल खुलते ही ट्वीट्स को डिलीट कर दिया गया. लेकिन इसके लिए किसी ने माफी नहीं मांगी. 

DNA ANALYSIS: Twitter पर क्‍यों फैलाई गई प्रदर्शनकारी किसान की मौत को लेकर ये Fake News?

नई दिल्‍ली:  अब आपको एक ऐसी ट्रैक्टर परेड के बारे में बताते हैं जो ट्विटर पर निकाली गई. कल ये फेक न्‍यूज़ फैलाई गई कि ट्रैक्टर परेड के दौरान पुलिस की फायरिंग में एक किसान की मौत हो गई है और इस फेक न्‍यूज़ को फैलाने में देश के एक बड़े टीवी संपादक, एक पूर्व मंत्री और कुछ पत्रकार भी शामिल हो गए. इन लोगों ने देश को भ्रमित करने की कोशिश की और ये दावा किया कि पुलिस की गोली लगने से एक प्रदर्शनकारी किसान मारा गया है. लेकिन जब हमने इस दावे की जांच की तो हमें एक वीडियो मिला.  

  1. ऐसा दावा किया गया कि पुलिस की गोली लगने से एक प्रदर्शनकारी किसान मारा गया है.
  2. जबकि खुद प्रदर्शनकारी पुलिस के जवानों को बेरहमी से पीट रहे थे. 
  3. नेताजी सुभाष चंद्र बोस की एक तस्वीर को लेकर एक फेक न्‍यूज़ फैलाई गई.

प्रदर्शनकारी किसान की मौत पर फेक न्‍यूज़ 

ये वीडियो दिल्ली के आईटीओ का है जहां कल पूरे दिन हिंसा होती रही. इस वीडियो में देखा जा सकता है कि जब किसान बैरिकेड तोड़ कर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे थे तो एक ट्रैक्टर उस दौरान पलट जाता है. इस ट्रैक्टर के नीचे आने से एक प्रदर्शनकारी की मौत हो गई. लेकिन हमारे देश के डिजाइनर पत्रकारों और नेताओं ने ये फेक न्‍यूज़ फैलानी शुरू कर दी कि इस प्रदर्शनकारी की मौत पुलिस की गोली लगने से हुई है. जबकि सच ये था कि प्रदर्शनकारी पुलिस के जवानों को बेरहमी से पीट रहे थे. 

हालांकि इस झूठ की पोल खुलते ही इन लोगों ने अपने ट्वीट्स को डिलीट कर दिया और सबसे अहम कि इसके लिए इन लोगों ने किसी से कोई माफी भी नहीं मांगी. 

जब एक तस्वीर को लेकर देश के राष्ट्रपति पर सवाल उठाए गए

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की एक तस्वीर को लेकर भी देश के राष्ट्रपति पर सवाल उठाए गए.  पर देश के बड़े पत्रकारों, सांसदों और जिम्मेदार लोगों ने अभियान छेड़ दिया कि राष्ट्रपति ने नेता जी के नाम पर एक अभिनेता की तस्वीर का उद्घाटन कर दिया.  जबकि ये पूरी तरह से झूठ था और जब इस झूठ की पोल खुली तो इन लोगों ने अपने ट्वीट्स को डिलीट कर दिया. सोचिए, ये लोग यहां भी अपनी जिम्मेदारी से भाग गए.

चौधरी चरण सिंह की किसान रैली 

वर्ष 1978 में किसान नेता और देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने दिल्ली में ही एक किसान रैली आयोजित की थी. इसमें करीब 50 लाख किसानों ने हिस्सा लिया था.  किसान गन्ने की फसल का सही दाम, सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था जैसी मांग के लिए आए थे.  पर किसानों ने पूरी शांति के साथ अपनी रैली की और घरों के लिए लौट गए.  ये होता है किसान, जो देश बनाता है वो देश बिगाड़ नहीं सकता है. आप ये भी कह सकते हैं कि चौधरी चरण सिंह जैसे नेताओं की अब कमी है. उनकी बात उनके समर्थक सुनते थे पर आज के नेता भीड़ तो इकट्ठा कर लेते हैं लेकिन उनकी कोई सुनता नहीं है और इसीलिए जब हिंसा हुई तो किसान नेता कहीं नहीं दिखे. 

किसी भी देश के लिए हिंसा उसका सबसे बड़ा शत्रु होती है और जब कहीं हिंसा होती है तो इसके पीछे एक संदेश भी छिपा होता है और आज की हिंसा का संदेश ये है कि जिन तीन कृषि कानूनों को लेकर आंदोलन किया जा रहा है. वो आंदोलन अब हाईजैक हो चुका है और गणतंत्र दिवस पर हुई हिंसा इसे पूरी तरह साबित करती है. 

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